दास्तान-ए-जिंदगी
ना ऊँचे-ऊँचे मकान है,
ना कोमल-मुलायम बिस्तर है...
आसमान मेरा छत है,
धरती की गोद मेरा तकिया है..
पहाड़ों जैसे बुजुर्ग हैं,
नदियों जैसी सहेलियाँ हैं...
हवाओं के गीत हैं,
चिड़ियों का संगीत है...
क्षितिजों के परे मंजिल है,
अरमानों के पर है...
समय के पन्ने है,
समंदर की स्याही है...
मुसाफ़िर हूं मैं भटकता हुआ,
जिंदगी मेरी एक दास्तान है...
👌👌👏👏👏👍
ReplyDelete🙏🙏
Delete👌👌👏👏
ReplyDelete🙏🙏
DeleteIt's amazing Bhargavi, words have magic if put in proper place with proper manner,,,. And if done, with your pure and innocent soul,,,, what comes out is feelings of दास्तान - ए - जिदगी
ReplyDeleteThank u so much!...means a lot..
DeleteNice👌
ReplyDeleteThank u Aryaa!
DeletePlease keep posting ...Waiting for next one.. stay blessed
ReplyDeleteSure👍...thank u!!
Deletenice poem 👌👌👏
ReplyDeleteThank u!!
Deletenice poem
ReplyDeleteThank u!!
DeleteGreat. Just great!
ReplyDeleteThanks lonee...
DeleteVery nice
ReplyDeleteThank u!!
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